भारत में Semiconductor plant ₹ 1 लाख करोड़ लागत के बन रहे :फोन,लैपटॉप,आईफोन,इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस होंगे सस्ते

भारत में Semiconductor की शुरुआत की जा रही है ₹ 1 लाख करोड़ में तीन फैक्ट्रीज का निर्माण किया जाएगा अलग-अलग लोकेशंस पर नोएडा,धोलेरा और आसाम में इनमें ताइवान की पीएसएमसी यूएसए की माइक्रोन और जापान की रेनेसास जैसी बड़ीकंपनीज ने इन्वेस्ट किया है |

एक छोटी सी चिप जिसकी सप्लाई में दिक्कत आई तो पुरी दुनिया में बावल मैच गया सारी  इंडस्ट्रीज के पहिए रुक गए जिसके बिना आज के समय में रहना मुश्किल है ये छोटे चिप ना हो तो हमारे और आपके सारे कम रुक जाएंगे इसी चिप की जिसे हम Semiconductor के नाम से जानते हैं

साथ ही समझेंगे की क्या है ये सेमी कंडक्टरशिप और इसका इस्तेमाल कहां होता है इसके अलावा ये भी समझेंगे की इसका प्रोडक्शन कहां होता है भारत इसमें आप निर्भर बने के लिए जोर शोर से क्यों प्रयासरत है|

Demand of chips

दुनिया का सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला देश भारत बन चुका है जहां इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेज जैसे फोन लैपटॉप्स और वॉचेस की डिमांड तेजी से बढ़ रही है इन सभी डिवाइसे सपोर्ट बड़ा रोल है जो माइक्रो चिप्स के साथ मिलकर डिवाइस के फंक्शंस को परफॉर्म करते हैं और इंफॉर्मेशन भी स्टोर करते हैं

मगर इंडिया अब इन चिप्स को खुद नहीं बना सकता सारे इंपोर्ट किए जाते हैं ज्यादातर चाइना से ,ऐसा क्यों है और क्या हमें इसे अपने देश में बनाना भी चाहिए| इंडिया और दूसरे देशों की गवर्नमेंट्स इस इंडस्ट्री को इतना कंट्रोल क्यों करना चाहती है इतना क्या इंपॉर्टेंट है इसमें ये सब जानने के लिए हमें इंडस्ट्री के बारे में जानना होगा

इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेज आज हर किसी की जिंदगी का एक अहम हिस्सा बन चुके हैं इनके बिना डेली लाइफ की जरूरतें पूरी करना ऑलमोस्ट इंपॉसिबल है ऐसे में कोई भी देश इनको मैन्युफैक्चर करने में सबसे आगे निकलना चाहेगा इंडिया में इलेक्ट्रॉनिक्स इंपोर्ट का सबसे बड़ा हिस्सा बनाते हैं जिसके बाद ऑयल और गोल्ड आते हैं

चिप का आयात

2011 से 2023 में देश में इलेक्ट्रॉनिक इंपोर्ट्स 120000 करोड़ से बढ़कर पहुंच गए हैं 620000 करोड़ तक जितना ज्यादा हम इंपोर्ट करते हैं उससे हमें ज्यादा पैसे भी खर्च करने पड़ते हैं और उनकी सप्लाई पर भी ज्यादा कंट्रोल नहीं रहता तो इसलिए देश में इनको मैन्युफैक्चर करने के प्लांस बन रहे हैं जो कि हम कर सकते हैं

चिप का विकास

हमने पहले मोबाइल फोन की मैन्युफैक्चरिंग के साथ किया आज इंडिया दुनिया का सेकंड लार्जेस्ट मोबाइल फोन मैन्युफैक्चरर है जहां 200 से ज्यादा फैक्ट्रीज मौजूद हैं जो कि पहले जीरो थी इलेक्ट्रॉनिक्स में हर टाइप का डिवाइस आता है जो इलेक्ट्रिक करंट को कंट्रोल और मैनिपुलेट कर सकता है इसमें अलग-अलग कंपोनेंट्स जैसे चिप्स ट्रांसिस्टर्स और Semiconductor वगैरह को यूज़ करके करंट को कंट्रोल किया जाता है

Semiconductor क्या है ?

Semiconductor ऐसे मैटेरियल्स को कहते हैं जो कंडक्टर से कम और इंसुलेटर से ज्यादा करंट पास होने देते हैं ये काफी वर्सेटाइल होते हैं इनमें कुछ इंप्योरिटीज डालकर इसकी कंडक्टिंग प्रॉपर्टीज को पूरी तरह से बदला भी जा सकता है जैसे करंट को सिर्फ एक डायरेक्शन में फ्लो करने देना इससे लाइट भी प्रोड्यूस किया जा सकता है और सनलाइट से इलेक्ट्रिसिटी भी प्रोड्यूस की जा सकती है बहुत यूजेस होते हैं |

Semiconductor बनाने वाले देश

कोरिया ,जापान, नेदर मैड्स और यूके इनमें से अकेला ताइवान ही दुनिया के लगभग 60% पर सेमीकंडक्टर्स बनाता है टीएसएमसी जो एक ताइवानीस कंपनी है इसका अपना शेयर ही 50% पर के करीब है चाइना ने ₹15 लाख करोड़ लगाए यूएसए ने 4100 करोड़ और यूरोपियन यूनियन ने 80000 करोड़ इन इन्वेस्टमेंट से साफ हो जाता है

ये कंट्रीज कितना important मानती है इस इंडस्ट्री को लेकिन इतनी इन्वेस्टमेंट जरूरी भी हो जाती है जब पता लगता है कि एक Semiconductor फैक्ट्री को तैयार करने में हजारों करोड़ रुपए लग जाते हैं इंडिया अभी इस रेस में काफी पीछे है जिसमें और ज्यादा इन्वेस्टमेंट की जरूरत पड़ेगी आगे निकलने के लिए |

History of Semiconductor

फैराडे ने ऑब्जर्व किया था 1833 में जब एक एक्सपेरिमेंट में सिल्वर सल्फाइड की रेजिस्टेंस कम हुई टेंपरेचर बढ़ाने पर जो कि मेटल्स के बिहेवियर से बिल्कुल उल्टा था सेमीकंडक्टर्स में करंट कुछ कंडीशंस में ब्लॉक किया जा सकता है जो कंडक्टर्स और इंसुलेटर्स में करना नामुमकिन है ऐसी प्रॉपर्टी पहली बार देखी गई

कुछ साल बाद 1874 में रेक्टिफायर के इन्वेंशन से इसके डेवलपमेंट का दरवाजा खुल गया रेक्टिफायर एसी करंट को डीसी में कन्वर्ट करता है इसके 70 साल बाद 1947 में यूएसए की बेल लेबोरेटरीज में काम करने वाले जॉन बर्डन और वाल्टर ब्रिटेन ने पॉइंट कांटेक्ट ट्रांजिस्टर इन्वेंट किया ट्रांजिस्टर एमप्लीफायर्स या स्विच की तरह काम करते हैं सर्किट में और इसको बनाने में सेमीकंडक्टर्स यूज किए जाएं तो इसमें थोड़ा सा करंट अप्लाई करने से भी बहुत ज्यादा करंट कंट्रोल किया जा सकता है

अगले साल 1948 में विलियम शोकली ने बाइपोलर जंक्शन ट्रांजिस्टर इन्वेंट किया जो पॉइंट कांटेक्ट से भी बेहतर था इनसे शुरुआत हुई ट्रांजिस्टर के era की जिसने इलेक्ट्रॉनिक्स को रेवोल्यूशन इज कर दिया इससे पहले वैक्यूम ट्यूब्स यूज़ होती थी जिसमें काफी लिमिटेशंस थी इन्हीं को देखते हुए इलेक्ट्रिकल इंजीनियर्स और रिसर्चस ने नई टेक्नोलॉजी को डेवलप करना शुरू किया जिससे हमें ट्रांजिस्टर मिला

ये वैक्यूम ट्यूब से बहुत कम पावर यूज़ करते हैं और उनसे काफी छोटे भी होते हैं मोस्टली जर्मेनियम का इस्तेमाल होता था इन्हें बनाने के लिए क्योंकि इसमें करंट ज्यादा आसानी से फ्लो करता था और इजी भी होता था बनाना ये सारे कमर्शियल बेचे गए वेस्ट इलेक्ट्रिक और जनरल इलेक्ट्रिक कंपनी द्वारा लेकिन अर्ली 1950 तक सिलिकॉन के फायदे सामने आने लगे पहला तो ये काफी ज्यादा अवेलेबल है earth में दूसरा इसमें फ्लो होने वाले करंट का कम लीकेज होना और तीसरा इसके सरफेस पर सिलिकॉन डाइऑक्साइड लेयर बन जाने से इसको प्रोटेक्शन भी मिल जाती है

पहला ट्रांजिस्टर

गर्डन टी और उनकी टीम ने पहला कमर्शियली अवेलेबल सिलिकॉन ट्रांजिस्टर बनाया इतना सक्सेसफुल हुआ यह कि टेक्स इंस्ट्रूमेंट्स ने यूएसए की ऑलमोस्ट पूरी ट्रांजिस्टर मार्केट को कैप्चर कर लिया

फिर 1959 मे बेल लब्स में कुछ इंजीनियर्स ने सिलिकॉन डाइऑक्साइड फोटोलिथोग्राफी यूज़ करके मेटलऑक्साइड सेमीकंडक्टर फील्ड इफेक्ट ट्रांजिस्टर यानी मॉसफेट को इन्वेंट किया यह कहीं ज्यादा स्केलेबल और कम पावर कंज्यूम करने वाला डिवाइस था जो कि दुनिया का पहला मास प्रोड्यूस्ड ट्रांजिस्टर बना ट्रांजिस्टर बनने के बाद पोर्टेबल इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेज भी पॉपुलर होने शुरू हुए जैसे 1952 में बना son tone और दुनिया का पहला डिवाइस बना ट्रांसिस्टर्स को इस्तेमाल करने वाला |

तुलना दूसरे देशों से

सेक्टर की बात करें तो यह सिर्फ 1.7% कंट्रीब्यूट करता है देश की जीडीपी में अगर कंपेयर करें तो ताइवान ,साउथ कोरिया और चाइना में यह नंबर है 15.5 15 और 13% पर रिस्पेक्टिवली इंडिया आज दुनिया की इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग का 5% हिस्सा बनाता है जिसमें से ज्यादातर देश में ही यूज़ हो जाता है एक्सपोर्ट कम होता है स्पेसिफिकली सेमीकंडक्टर्स को देखें तो उसमें भी इंडिया में टैलेंट की कमी नहीं है

भारत में इंजीनियर

आईटीआईए के मुताबिक दुनिया के 20% Semiconductorडिजाइन इंजीनियर्स जो कि है लगभग 125000 इंडिया में ही हैं लेकिन जहां हर साल 8 लाख इंजीनियर्स ग्रेजुएट होते हैं उनमें से बहुत कम है जो इस इंडस्ट्री में काम करने योग्य होते हैं प्रॉपर स्किल्स नहीं सीख पाते इसकी अहमियत समझकर यूनिवर्सिटीज में बेहतर स्किल कोर्सेस लाने की जरूरत है लोकल मैन्युफैक्चरिंग के लिए कंपनीज को थोड़े incentives दिए जा सकते हैं

कोविड से हुई सप्लाई चेन डिस्ट्रक्शन से भी इंडियन इलेक्ट्रॉनिक्स को फायदा मिला है जो कंपनीज पूरी तरह या ज्यादातर चाइना में मैन्युफैक्चरिंग कर रही थी उन्होंने डायवर्सिफाई करना जरूरी समझा इंडिया वियतनाम और मलेशिया जैसे देशों में लेकिन अभी इंडिया में इसका सबसे बड़ा चैलेंज है

हाई टैरिफ रेट और ईज ऑफ बिजनेस इसकी वजह से कई कंपनीज इंसेंटिव्स के बाद भी साउथ ईस्टर्न एशियन कंट्रीज को प्रेफर करती है इंडिया के ऊपर गवर्नमेंट ने यही इंसेंटिव स्कीम्स पीएलआई लांच की थी मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को इनकरेज करने के लिए कई सेक्टर्स में दी जाती हैं यह इलेक्ट्रॉनिक्स को मिलाकर इंडिया का टारगेट है

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भारत का टारगेट

2029 तक दुनिया की स्मार्टफोन मैन्युफैक्चरिंग का 25%हिस्सा हासिल करना जो भी सिर्फ 4 पर पर है लेकिन इसमें भी सबसे बड़ा चैलेंज है टैक्सेस इंडिया चार्जर्स कुछ तरह के सर्किट और फुली असेंबल्ड फोन पर 20 %पर का टैक्स लगाती है और बैटरी कवर्स पर 10% पर का इसके मुकाबले चाइना और वियतनाम अपने ट्रेडिंग पार्टनर्स और फ्री ट्रेड एग्रीमेंट वाली कंट्रीज के कंपोनेंट्स पर कभी भी 10% पर से ज्यादा टैक्स नहीं लगाते

भारत में पहला आईफोन असेम्बल

अक्टूबर 2023 में टाइनीज कंपनी विन कॉरपोरेशन जो iPhone मैन्युफैक्चर करती है अपना कर्नाटका प्लान टाटा को बेच दिया नवंबर में चाइनीज कंपनी Lena’s किया है पेटन कंपनी ने भी अपने चेन्नई प्लांट्स का 65% स्टेक टाटा को बेचना डिसाइड किया है

भारत में Semiconductor बनाने की घोषणा

सेमीकंडक्टर की बात करें तो देश में हर साल लगभग 2000 चिप्स डिजाइन की जाती हैं और 20000 इंजीनियर्स आईसी डिजाइन करते हैं 2017 की डिपार्टमेंट ऑफ इलेक्ट्रॉनिक्स एंड इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी की रिपोर्ट के मुताबिक सेमीकंडक्टर टेक्नोलॉजी इंडिया में इंप्रूव करने के लिए सिंगापुर और जर्मनी की इंडस्ट्रीज के साथ पार्टनरशिप भी की गई है इसी साल मार्च में गवर्नमेंट ने ₹125000 करोड़ खुद इन्वेस्ट करने का डिसाइड किया है

तीन प्लांट Semiconductor के लिए

तीन प्लांट्स के लिए एक Semiconductor फैब्रिकेशन प्लांट और दो पैकेजिंग एंड टेस्ट फैसिलिटी यह देश का पहला फैब होगा पीएसएमसी और टाटा इलेक्ट्रॉनिक्स के बीच एक जॉइंट वेंचर इसमें 28 40 55 और 110 नैनोमीटर चिप्स प्रोड्यूस की जाएंगी 50000 वेफर्स पर हर महीने कंपेरटिवली कम एडवांस चिप्स हैं ये तो इनमें सेंसिटिव टेक्नोलॉजी का भी कम उपयोग होगा और बनाने में भी कम रिसोर्सेस लगेंगे

यह प्लांट ढोलेरा गुजरात में बनाने का प्लान है इसके अलावा चिप असेंबली टेस्ट और पैकेजिंग के लिए दो फैसिलिटी बनेंगी पहली होगी जागी रोड आसाम में टाटा इलेक्ट्रॉनिक्स की ₹27000 करोड़ में दूसरी सनं गुजरात में जो ये तीन कंपनीज मिलकर बना रही है 7000 करोड़ में इंडिया के लिए ये इंडस्ट्री सेट अप करना काफी इंपॉर्टेंट है

प्लांट लगने में चुनोती

इसमें कई चैलेंज का भी सामना करना पड़ता है जैसे ब्यूरोक्रेटिक और पॉलिसी हर्डल्स मिड 2000 में intel का एक प्लांट बनने वाला था लेकिन गवर्नमेंट समय रहते इन्वेस्टमेंट पॉलिसी नहीं बना पाई और intelने अपने प्लांट्स के लिए चाइना और वियतनाम को चुना| ब्यूरोक्रेसी से भी कई प्रोजेक्ट्स या प्लांस इफेक्ट होते हैं टाइमली क्लीयरेंस नहीं मिल पाती इसके चलते ना सिर्फ इंडस्ट्री की ग्रोथ रुक जाती है बल्कि एंप्लॉयमेंट अपॉर्चुनिटी पर भी बुरा असर पड़ता है

इन issues के अलावा एक Semiconductor फैक्ट्री बिजली और पानी दोनों ही अंधाधुन तरी से इस्तेमाल करती हैं और दोनों का ही अकाल है हमारे देश में लगभग 8.5 करोड़ लोगों के पास पीने के लिए साफ पानी नहीं है देश में क्लाइमेट चेंज और फ्रेश वाटर की गिरती availability की वजह से भी सेमीकंडक्टर प्लांट्स के लिए पानी उपलब्ध करवाना बहुत मुश्किल हो जाता है

बिजली की बात करें तो 2022 में देश को सबसे बड़े पावर शॉर्टेजेस में से एक को झेलना पड़ा था जब कोल की कमी पड़ गई थी पूरे देश में ग्लोबल वार्मिंग से भी कूलिंग की जरूरत बढ़ रही है जिससे इलेक्ट्रिसिटी सप्लाई करने में प्रेशर और बढ़ेगा इससे फिर सेमीकंडक्टर प्लांट्स को सफर करना पड़ सकता है

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